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What are the CAA and NRC in Hindi

What are the CAA and NRC in Hindi

CAA (सिटीजन अमेंडमेंट एक्ट) नागरिकता विधेयक बिल और NRC क्या है? What are the CAA and NRC in Hindi

CAA and NRC in Hindi:

मोदी सरकार के पहले चरण में 2016 में सिटीजन अमेंडमेंट एक्ट का प्रस्ताव लाया गया था। लेकिन उस वक्त राज्यसभा में भारी विरोध के कारण यह प्रस्ताव उस वक्त प्रलंबित कर दिया गया था और स्टैंडिंग समिति के पास भेज लेकिन अब मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में इस बार भारत के गृहमंत्री श्री अमित शहा के द्वारा इस बिल को 9 दिसम्बर, 2019 को लोकसभा में पेश किया गया और लोकसभा में 311 बनाम 80 वोटों से यह विधेयक पारित हो गया।

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उसके बाद 11 दिसम्बर को इसे राज्यसभा में पेश किया गया जहाँ बिल के पक्ष में 125 और खिलाफ में 99 वोट पड़े। इस तरह से बिल पास हो गया। आख़िरकार, 12 दिसम्बर, 2019 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद नागरिकता विधेयक 2019 अब कानून का रूप ले चुका है।

तब से लेकर इस लेख लिखने तक सारे देशभर में इस नागरिकता कानून 2019 को लेकर देश भर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और कही-कही इसके समर्थन में भी लोग इकट्ठे हो रहे है।

आखिर क्या खास है इस नागरिकता विधेयक बिल 2019 में?

इतिहास:

इसके लिए हमें आज़ादी के बाद की तसबीर हमारे सामने लानी होगी जब इस बिल को सबसे पहले स्वीकार किया गया था और उसके बाद क्या-क्या संशोधन हुए?

सबसे पहले चलते है 1955 में जब सबसे पहले नागरिकता कानून को बनाया गया था।

यह कानून 30 दिसम्बर 1955 को पारित किया गया था। उसके बाद समय-समय पर उसके कुछ अनुच्छेद में 1986, 1992, 2003, 2005, 2015 और अब 2019 में बदलाव किया गया है।

नागरिकता कानून 1955 क्या है?

नागरिकता कानून, 1955 यह तय करता है कि भारतीय नागरिक कौन है और कोई भी व्यक्ति अगर भारतीय नहीं है वह कैसे भारतीय नागरिकता अधिग्रहण कर सकता है।

इस प्रकार, भारत के संविधान के साथ ही नागरिकता कानून, 1955 में भारत की नागरिकता को विस्तृत तरीके से समझाता है।

इस कानून में किसी व्यक्ति को नागरिकता देने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 5 से 11 (पार्ट II) में प्रावधान किए गए हैं।

नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 क्या था?

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में, नागरिकता कानून, 1955 में बदलाव के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक, 19 जुलाई, 2016 को पेश किया गया था।

इस बिल में भारत के तीन पडोसी देश, जो बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान जो की “घोषित मुस्लिम देश” है। इन देशों से अवैध रूप से आये हुए गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान है।

हालाँकि, यह प्रस्ताव उस वक्त राज्यसभा में प्रेरित नहीं हो सका और उसे 12 अगस्त, 2016 को संयुक्त संसदीय कमिटी के पास भेजा गया था।

इस कमिटी ने 7 जनवरी, 2019 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी उसके बाद अगले ही दिन, यानी 8 जनवरी, 2019 को विधेयक को लोकसभा से मंजूरी मिल गयी थी।

लेकिन उस समय किसी कारनवश राज्य सभा में यह विधेयक पेश नहीं हो पाया था। उसके बाद उसे ठन्डे बस्ते में डाला गया, क्योंकि चुनाव सर पर था।

अब जब नयी सरकार का गठन हुआ तो फिर एक बार इस विधेयक को शीतकालीन सत्र में सरकार की ओर से फिर से पेश किया गया।

दोनों सदनों में यह बिल पास होकर अंततः राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह कानून बन गया।

क्या खास है इस नागरिकता संशोधन कानून 2019 में?

नागरिकता संशोधन कानून 2019 में तीन मुस्लिम देश “अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान” से आए गैर मुस्लिम, जिसमे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिस्चन धर्मों के पलायन करके / अवैध रूप से आये हुए, लोग शामिल है, उनकी क़ानूनी नागरिकता के नियम को आसान बनाया गया है।

इसके पहले किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम पिछले 11 साल से यहाँ रहना अनिवार्य था।

इस नियम को आसान बनाकर नागरिकता हासिल करने की अवधि को एक साल से लेकर 6 साल किया गया है यानी इन तीनों देशों के ऊपर उल्लिखित छह धर्मों के बीते एक से छह सालों में भारत आकर बसे लोगों को नागरिकता मिल सकेगी।

यानी अब 2014 तक इन तीनों देशों से अवैध रूप से आये हुए ऊपर उल्लिखित छह धर्मोंके लोगों को नागरिकता मिल जाएँगी।

अब देखते है कि CAA (Citizenship Amendment Act) या नागरीकता संशोधन कानून पर देशभर में बवाल क्यों मचा हुआ है?

सबसे पहले इस संशोधन बिल पर असम में विरोध हुआ। जिसके बाद, धीरे-धीरे सारे देशभर इसके विरोध में प्रदर्शन हुए. हालाँकि असम में और उसके साथ में पूर्वोत्तर राज्यों में हुए विरोध प्रदर्शन और भारत के इतर राज्यों में हुए प्रदर्शन में काफी हद तक अलग-अलग कारण है।

जहाँ पर असम और दूसरे पूर्वोत्तर राज्यों में 1971 के वक्त जब बांग्लादेश का निर्माण हुआ, तबसे लाखों शरणार्थी आकर बस गए जिसमे से बहोत सारे लोग बाद अपने देश में वापस नहीं गए जिसमे मुस्लिम, हिन्दू और ईसाई धर्मों के लोगोंकी संख्या सबसे ज़्यादा थी।

तब से असम के लोगों की मांग थी की इन शरणार्थियों और घुसपैठियों को पहचान कर उन्हें उनके देशों में वापस भेजा जाये, चाहे वह लोग किसी भी धर्म से जुड़े हुए हो।

असम के लोगों को दर है कि अगर इन लोगों को वापस नहीं भेजा गया तो वे उनकी जमीं पर कब्ज़ा कर लेंगे और अपने ही राज्य में वे लोग अल्पसंख्यांक बनेंगे, उनकी डेमोग्राफी, संस्कृति, परंपरा बदल जाएँगी।

अब, जबकि मुस्लिम लोगों को छोड़कर बाकि सभी छह धर्मोके शरणार्थियों और घुसपैठियों को रहने की इजाजत दी गयी है तो यह स्पष्ट है कि अब उन लोगों को वापस नहीं भेजा जायेगा यानी असम के लोगों का डर सच साबित हो जायेगा ऐसा उन्हें लग रहा है।

बाकि देश में सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल का विरोध इसलिए हो रहा है की, जबकि हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है तो मुस्लिमों को अलग करके बाकि लोगोंको बचाया जा रहा है, जिससे मुस्लिम लोगों के साथ भेदभाव किया जा रहा है और दूसरे धर्मो के लोगों को तबज्जो दी जा रही है। जिससे हमारे आर्टिकल 14 का भंग हो रहा।

इससे हमारी सर्वधर्म समभाव के भाव को दबाया जा रहा है और समाज बट रहा है।

मुस्लिम समाज के बीच अफवाह फैली है कि इस कानून से उनकी भारतीय नागरिकता छिन सकती है।

जबकि सरकार ने कई बार साफ किया है कि यह कानून नागरिकता देने के लिए है, न कि नागरिकता छीनने के लिए।

इसका विरोध करने वाले इसे गैर-संवैधानिक बता रहे हैं जबकि सरकार का कहना है कि इसका एक भी प्रावधान संविधान के किसी भी हिस्से की किसी भी तरह से अवहेलना नहीं करता है।

सरकार का तर्क यह है कि यह जो शरणार्थी भारत में तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान बांग्लादेश से आये हुए है वह वहाँ के प्रताड़ित धार्मिक अल्पसंख्यक है इसलिए इन प्रताड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता दीया जाना ज़रूरी है।

हालाँकि, मुसलमानों के बारे में ऐसा नहीं है। यह सारे पडोसी देश इस्लामिक धर्म के नाम पर ही बने हुए है, इसलिए मुस्लमान शरणार्थी लोगों को उनके देश में वापस जाना चाहि।

इस कानून के जरिए धर्म के आधार पर भेदभाव के आरोपों पर सरकार का कहना है कि इसका किसी भी धर्म के भारतीय नागरिक से कोई लेना-देना नहीं है।

जो मुस्लिम रहवासी भारत का है, उसे कुछ भी डरने की ज़रूरत नहीं है और जिसे भारत में ही रहना है, वह क़ानूनी तरीके से भी आवेदन करके रह सकता है, चाहे वह मुस्लिम व्यक्ति हो या अन्य कोई भी धर्म का।

अब देखते है कि NRC क्या है ?

NRC का मतलब है, नैशनल सिटिजन रजिस्टर (National Register of Citizen) । यह रजिस्टर यह सुनिश्चित करता है कि सही मायनों में कोनसा व्यक्ति भारतीय नागरिक है, और कौन नहीं।

इस रजिस्टर के जरिये भारत में अवैध तरीके से रह रहे घुसपैठियों की पहचान करने की प्रक्रिया पूरी करनी है। इसका प्राविधान हर राज्यों में है। फ़िलहाल यह प्रक्रिया असम राज्य में ही पूरी हुयी है।

असम में नैशनल सिटिजन रजिस्टर की लिस्ट बन कर पब्लिश भी हुई है जिसे 2013 मेंसुप्रीम कोर्ट की निगरानी में पूरा किया गया है।

जब यह लिस्ट बनी तब सरकार का कहना था कि वह पूरे देश में एनआरसी लागू करेगी और उसकी रुपरेखा असम की एनआरसी के मापदंडों से अलग होगी।

लेकिन 21 दिसम्बर 2019 तारीख को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा है की, फ़िलहाल किसी भी राज्य में NRC नहीं की जाएगी और इसका जायजा लेकर भविष्य में उसे एक नए फॉर्म में लाया जायेगा।

उन्होंने आश्वत किया की कोई भी भारतीय नागरिक को देश से बाहर नहीं किया जायेगा और किसी को भी डरने की ज़रूरत नहीं। एक बड़ी आबादी को CAA और NRC में अंतर ठीक से नहीं पता है।

एनआरसी या नैशनल सिटिजन रजिस्टर के जरिए भारत में अवैध तरीके से रह रहे घुसपैठियों की पहचान करने की प्रक्रिया पूरी होनी है।

अभी यह प्रक्रिया सिर्फ़ असम में हुई और वहाँ एनआरसी की फाइनल लिस्ट पब्लिश हो चुकी है। असम में यह प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की देख-रेख में पूरी हुई है।

हालांकि, सरकार का कहना है कि वह पूरे देश में एनआरसी लागू करेगी।

सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि देश में लागू होने वाली एनआरसी की रूपरेखा असम की एनआरसी के मापदंडों से अलग होगी।

एनआरसी में नाम रजिस्टर हो जाने से यह साबित हो जायेगा की कौन के तहत भारत का नागरिक है और कौन नहीं।

एनआरसी में नाम साबित करने के लिए किसी भी व्यक्ति को यह साबित करना होगा कि उसके पूर्वज 24 मार्च 1971 से पहले भारत आ गए थे।

यह इसलिए किया गया है कि उस वक्त तक बहोत सारे अवैध बांग्लादेशी लोग उस वक्त भारत में आ गए थे।

उन अवैध बांग्लादेशियों को भारत से निकालने के लिए एनआरसी को पहले असम में लागू किया गया है।

भारत का वैध नागरिक साबित होने के लिए या एनआरसी में अपना नाम रजिस्टर करने के लिए किसी भी व्यक्ति के पास निम्नलिखित में से कोई भी एक दस्तावेज होना ज़रूरी है।

  1. रिफ्यूजी रजिस्ट्रेशन (व्यक्ति या उसके पूर्वजों का)
  2. आधार कार्ड
  3. जन्म का सर्टिफिकेट
  4. एलआईसी पॉलिसी
  5. सिटिजनशिप सर्टिफिकेट
  6. पासपोर्ट
  7. सरकार के द्वारा जारी किया लाइसेंस या सर्टिफिकेट

अगर कोई व्यक्ति NRC में शामिल नहीं होता है तो उसके साथ क्या होगा?

जैसा की असम के मामले में किया गया है की, अगर कोई भी व्यक्ति एनआरसी में शामिल नहीं हो पाता तो उसे डिटेंशन सेंटर में ले जाया जाएगा। उसके बाद सरकार उन देशों से संपर्क करेगी जहा से वह आये है और वहाँ के नागरिक है।

अगर सरकार द्वारा प्रमाणित और उपलब्ध सबूतों को दूसरे देशोंकी सरकार मान लेती है तो उस व्यक्ति को वापस उनके देश भेज दिया जाएगा।

अब देखते है कि असम में नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 का विरोध क्यों हो रहा है और सरकार के क्या-क्या तर्क है?

जैसे की समझ में आ रहा है कि नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 और NRC का एक सीधा सा सबंध है। जब असम में NRC किया गया था तब करीब 19, 00, 000 (उन्नीस लाख) लोग अवैध पाए गए लेकिन मजेदार बात यह है कि उनमे से करीब चौदह लाख लोग हिन्दू धर्म के निकले।

असम के मूल निवासियों का यह तर्क है कि इन अवैध हिन्दू लोगों को बचने के लिए सरकार ने आनन्-फानन में नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 को लाया है। जिससे की वे चौदह लाख लोग बच जाये और उन्हें भारत की नागरिकता मिले।

असम ले मूलनिवासी लोग नहीं चाहते की कोई भी बाहरी लोग, चाहे वह किसी भी धर्म से ताल्लुक रखते हो, वहाँ पर बस जाये और वहाँ के मूल-निवासियों को अल्पसंख्यक बना दे।

इसलिए वे चाहते है कि उन सभी अवैध लोगोंको उनके देश में भेज दिया जाये, जहा से वे आये है।

इस पर सरकार का तर्क है की, यह लोग ख़ुशी से पलायन करके हमारे देश में नहीं-नहीं आये, बल्कि वे लोग उनके देश में अल्पसंख्यक है और निश्चित ही या लोग वहाँ पर प्रतारणा के शिकार हुए है, इसलिए वे अपनी देश की शरण में आये है और मानवता के खातिर उन्हें प्रस्थापित करना भी ज़रूरी है।

अगर अब उन्हें वापस भेज दिया तो भी उनका भविष्य उनके देश में शायद अच्छा नहीं होगा।

इसके आलावा सरकार ने कहा है कि जो मुस्लिम अवैध रूप से आये वे लोग निश्चित रूप से तत्कालीन सरकार से प्रताड़ित नहीं हो सकते, इसलिए उन्हें वापस भेज दिया जायेगा।

सरकार ने असम की विविध संघटनाओं को आश्वत किया है की, इन गैर मुस्लिम-शर्णार्थियों को भारत में दूसरे प्रान्त में भेज दिया जायेगा ताकि उन्हें कुछ प्रोब्लेम्स न हो।

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