भारत सरकार के स्वतंत्र कार्यालय कौन से है, और इनकी क्या भूमिका है?
भारतीय संविधान के ऐसा पुस्तक है जिसके द्वारा सभी सरकारी नियमों का सञ्चालन होता है। स्वतंत्रता के बाद, डॉ बाबासाहेब आम्बेडकर के नेत्तृत्व में एक समिति का गठन किया गया।
जिसने भारत के संविधान का निर्माण किया और उसे 26 जनवरी 1950 से लागू किया गया।
सम्पूर्ण देश में इस संविधान का पूरी तरह से पालन हो। इसके लिए एक व्यवस्था का निर्माण किया गया जिसके तहत विभिन्न संवैधानिक संस्थाओंका निर्माण किया गया।
इसके अलावा कुछ कार्यालयों का निर्माण समय-समय पर किया गया, जो स्वतंत्र रूप से काम करते है।
इन संस्थाओं पर भारतीय सरकार की कोई भूमिका नहीं होती और वह स्वतंत्र तथा निष्पक्ष रूप से काम करते है।
इसमें से कुछ कार्यालयों का काम तो सरकार को ठीक तरह काम करने के लिए परामर्श भी देना होता है।
दूसरी ओर कुछ अतिरिक्त संवैधानिक कार्यालय सरकार द्वारा संसद में अधिनियम पारित करने के बाद स्थापित किए जाते हैं।
इन्हे भारत में गैर-संवैधानिक संस्था (NCB) भी कहा जाता है।
संवैधानिक संस्था या कार्यालय क्या है:
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ये ऐसे कार्यालय या संस्था हैं जिनका उल्लेख भारत के संविधान में किया गया है और इसलिए इन्हें स्वतंत्र और अधिक शक्तिशाली माना जाता है। इन कार्यलयोंका एक स्वतंत्र बजेट होता है।
भारत सरकार के स्वतंत्र कार्यालय कौन-कौन से है, और इनकी क्या भूमिका होती है।
भारतीय निर्वाचन आयोग (Indian Election commission) :
भारतीय निर्वाचन आयोग एक महत्त्वपूर्ण स्वायत्त संवैधानिक (autonomous constitutional) संस्था है। जिसका निर्माण संविधान के आर्टिकल 324 के तहत 25 जनवरी 1950 किया गया।
जैसा की सबको मालूम है कि भारत ने democracy या गणतंत्र प्रणाली का चुनाव किया गया है।
और इसके लिए सभी जनता के प्रतिनिधियों को जनता के द्वारा ही चुना जाता है और इस चुनावों और चुनावी प्रक्रिया के लिए निर्वाचन आयोग जिम्मेदार होता है।
यह आयोग देशभर में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा और विधान परिषद के चुनाव कराता है।
निर्वाचन आयोग के अधिकार:
संविधान के तहत निर्वाचन आयोग को यह अधिकार है कि चुनाव के वक्त कोई भी विपरीत परीस्थिति पैदा होने की आशंका हो तो पहले से जारी कानूनों ने अगर अपर्याप्त प्रावधान हों तो आयोग उचित कार्यवाही का सकता है।
क्या है निर्वाचन आयोग की जिम्मेदारी:
नियमित अंतराल पर लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव कराना निर्वाचन आयोग की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।
इसके अंतर्गत निर्वाचन आयोग लोकसभा, विधानसभा आदी चुनावों से पहले आचार संहिता लागू करता है।
जिससे स्वतंत्र और पारदर्शी चुनाव कराए जा सकें।
यह एक आदर्श मार्गदर्शक नियम होते है जिन्हे सामान्यतः चुनावों के 3 हप्ते पहले लगाया जाता है।
आयोग ने पहली बार 1971 में 5वीं लोकसभा के लिए आचार संहिता लागू की थी।
राजनीतिक दलों और नेताओं को इसी के दिए हुए गाइडलाइन्स के अनुसार आचार करना होता है।
इसके अलावा जिन राजनितिक पार्टियोंको चुनाव लड़ना है। उन्हें निर्वाचन आयोग में रजिस्टर करना होता है।
आयोग ही पार्टियों को चुनाव चिह्न अलॉट करता है।
निर्वाचन आयोग हर चुनाव में खड़े उम्मीदवार के चनाव के लिए होने वाले खर्च की सीमा तय करता है और उनके खर्चे का ब्यौरा भी रखता है।
निर्वाचन आयोग यह सुनिश्चित करता है कि उम्मीदवार ने अपना परचा ठीक से भरा है के नहीं।
यदि आयोग को लगता है कि फॉर्म में कुछ छुपाया या बढ़ा-चढ़कर बताया जा रहा है, तो उसे उम्मीदवार को चुनाव से हटा भी सकता है।
इलेक्टोरल रोल और वोटर्स की लिस्ट को भी समय-समय पर अपडेट करना निर्वाचन आयोग का काम है।
अगर कभी आयोग को लगे की चुनाव से जुड़े प्रकाशन, ऑपिनियन पोल या एग्जिट पोल से चुनाव प्रभावित हो रहा है, तो वह उन पर भी पर रोक लगा सकता है।
संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission) :
संघ लोक सेवा आयोग। जिसे आमतौर पर UPSC के रूप में संक्षिप्त में जाना जाता किया जाता है।
भारत की प्रमुख केंद्रीय भर्ती एजेंसी है जो सारे देश प्रशासकीय सेवाओं और समूह ए के लिए नियुक्तियों और परीक्षाओं के लिए जिम्मेदार है।
UPSC संस्था का निर्माण अंग्रेजों के कार्यकाल में 1 अक्टूंबर 1925 में हुआ।
जिसे देश स्वतंत्र होने के बाद में भी उसी स्वरुप में भारतीय संविधान के संस्था के स्वरुप में जारी रखा गया।
इस आयोग के अनुमोदन को भारत के संविधान द्वारा XIV के लेख 315 से 323 से अनुसूचित किया गया है।
आम लोग ज्यादातर यूपीएससी परीक्षा को आईएएस परीक्षा के रूप में जानते हैं।
मगर आईएएस परीक्षा ही एकमात्र परीक्षा नहीं है, जो कि यूपीएससी के अंतर्गत आती है।
यह संवैधानिक संस्था देश में कई प्रतिष्ठित पदों के लिए उम्मीदवारों की भर्ती के लिए विभिन्न परीक्षा आयोजित करता है।
और सिविल सेवा परीक्षा उनमे से एक है जिनसे भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), आईपीएस, आईएफएस,आईईएस आदि पदों के लिए उम्मीदवार सिविल सेवा परीक्षा में प्रवेश करते हैं।
आइये देखते है कि यूपीएससी परीक्षा किन-किन पदों के लिए उम्मीदवार का चयन करती है।
- सिविल सेवा परीक्षा (Civil Service Examination)
- भारतीय वन सेवा परीक्षा (आईएफएस)
- संयुक्त चिकित्सा सेवा परीक्षा
- राष्ट्रीय रक्षा अकादमी परीक्षा
- विशेष कक्षा रेलवे अपरेंटिस
- इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा
- नौसेना अकादमी परीक्षा
- संयुक्त रक्षा सेवा परीक्षा
- केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सहायक कमांडेंट) परीक्षा
- संयुक्त भौगोलिक और भूवैज्ञानिक परीक्षा
- भारतीय आर्थिक सेवा / भारतीय सांख्यिकी सेवा परीक्षा
यूपीएससी के कार्य:
लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के प्रमुख कार्यों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 320 के द्वारा स्पष्ट किया गया हैं:
- सम्पूर्ण देश में सेवाओं की नियुक्ति के लिए विभिन्न परीक्षाएँ आयोजित करना (प्रारंभिक और मुख्य)।
- साक्षात्कार के माध्यम से चयन द्वारा सीधे भर्ती।
- पदोन्नति (Promotion) । प्रतिनियुक्ति (deputation) और अवशोषण (absorption) के द्वारा विभिन्न विभाग के अधिकारी नियुक्त करना।
- सरकारी नियमों ते तहत विभिन्न सेवाओं और पदों के लिए भर्ती नियमों का गठन और ज़रूरत के समय संशोधन करना।
- विभिन्न सिविल सेवा से सम्बंधित अनुशासनात्मक मामलों का निपटारा।
- किसी भी सबंधित मामले के बारे में, वे सीधे भारतीय राष्ट्रपति द्वारा सरकार की सिफारिश कर सकते हैं।
- केंद्रीय लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) सीधे भारत के राष्ट्रपति से जुड़ा होता है और वह अपनी वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपता है।
राज्य लोक सेवा आयोग:
भारत के संविधान के भाग XIV [1] में अनुच्छेद 315 से 323 तक संघ के लिए लोक सेवा आयोग और प्रत्येक राज्य के लिए एक लोक सेवा आयोग की स्थापना का प्रावधान है।
संघ लोक सेवा आयोग का निर्माण अखिल भारतीय सेवाओं और उच्चतर केंद्रीय सेवाओं में भर्ती के लिए परीक्षा आयोजित करने और अनुशासनात्मक मामलों पर राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए किया गया है।
उसी धरती पर, राज्य सेवाओं में भर्ती के लिए परीक्षाओं का संचालन करने के लिए और अनुशासनात्मक मामलों पर राज्यपाल को सलाह देने के लिए हर राज्य में राज्य लोक सेवा आयोग का गठन किया गया है।
भारत में हर राज्य का एक अलग राज्य लोक सेवा आयोग है। जिससे उसी राज्य का डोमेसाइल विद्यार्थी दे सकता है। उदहारण के लिए महाराष्ट्र की सेवा भर्ती के लिए महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन या MPSC।
राज्य लोक सेवा आयोग के कार्य:
भारत के संविधान के अनुच्छेद 320 के तहत। राज्य सेवा आयोग।
सिविल सेवाओं और पदों पर भर्ती से सम्बंधित सभी मामलों पर परामर्श देता है और उसके कार्य निम्नलिखित है:
- राज्य की सिविल सेवाओं में नियुक्ति के लिए परीक्षाएँ आयोजित करना।
- परीक्षामे पात्र उम्मीदवारों की साक्षात्कार के माध्यम से चयन द्वारा सीधी भर्ती।
- राज्य सरकार के तहत विभिन्न सेवाओं और पदों के लिए भर्ती नियमों का निर्धारण और संशोधन।
- विभिन्न सिविल सेवा से सम्बंधित अनुशासनात्मक मामले।
- राज्य के सिविल सेवा पदों पर भर्ती के तरीकों से सम्बंधित सभी मामलों पर सलाह देना।
- नियुक्तियों। पदोन्नति। स्थानान्तरण आदि के सिद्धांत का पालन करने के लिए सलाह देना।
- दावों के निपटारे आदि पर सलाह देना।
- राज्य विधानमंडल। एक अधिनियम द्वारा। राज्य लोक सेवा आयोग के लिए अतिरिक्त कार्यों के अभ्यास के लिए प्रदान कर सकता है।
वित्त आयोग (Finance Commission):
राष्ट्रपति द्वारा पहली बार संविधान लागू होने के दो वर्ष के भीतर वित्त आयोग (Finance Commission) का गठन किया गया।
इस आयोग को संविधान के अनुच्छेद 280 के अनुसार, 22 नवम्बर, 1951 में के-सी नियोगी की अध्यक्षता में गठित किया गया।
वित्त आयोग को प्रत्येक पाँच वर्ष की समाप्ति पर या उससे पहले ऐसे समय, जिसे राष्ट्रपति आवश्यक समझे, गठित किया जाता है जिसके समिति में एक अध्यक्ष (chairman) और चार अन्य सदस्य (members) होते हैं।
वित्त आयोग के कार्य:
आयोग निम्न विषयों पर राष्ट्रपति को सिफारिश करता है:
- डायरेक्ट टैक्स जैसे आय कर और अन्य करों से प्राप्त राशि का केंद्र और राज्य सरकारों के बीच किस अनुपात में बँटवारा किया जाये।
- “भारत के संचित कोष” से अलग-अलग राज्यों के राजस्व में किन सिद्धांतों पर सहायता दी जाये।
- सुदृढ़ वित्तीय प्रबंध के लिए राष्ट्रपति द्वारा आयोग को सौंपे गए अन्य विषय के बारे में आयोग राष्ट्रपति को आयोग सिफारिश करता है।
- राष्ट्रपति वित्त आयोग की सिफारिशों को संसद के समक्ष रखता है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग (National Commission for SCs एंड STs):
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग एक भारतीय संवैधानिक संस्था है।
जो अपने सामाजिक,शैक्षणिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक हितों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने के लिए अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के शोषण के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया है। और इसके लिए संविधान में विशेष प्रावधान किए गए थे।
भारतीय संविधान का 338 राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग से सम्बंधित है।
और अनुच्छेद 338 A अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग से सम्बंधित है।
इस संवैधानिक आयोग का निर्माण अगस्त 1978 भोला पासवान शास्त्री की अध्यक्षता और अन्य चार सदस्यों के समिति के निर्माण के साथ किया। हालाँकि। इस आयोग को 2004 में 2 अलग-अलग भागों में बांटा गया।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (National Commission for SCs)
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के कार्य:
भारतीय संविधान के। किसी अन्य कानून के और सरकार के किसी भी आदेश के तहत अनुसूचित जातियों के लिए प्रदान किए गए सुरक्षा उपायों से सम्बंधित सभी मामलों की जांच और निगरानी के करना एवं ऐसे सुरक्षा उपायों के कार्य का मूल्यांकन करना।
अनुसूचित जातियों के अधिकारों और सुरक्षा उपायों से वंचित करने के सम्बंध में विशिष्ट शिकायतों की जांच करना।
अनुसूचित जातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना, सलाह देना और संघ या किसी भी राज्य के तहत उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना
राष्ट्रपति को सुरक्षा उपायों के काम करने की सालाना या ऐसे वक्त रिपोर्ट पेश करना, जब ज़रूरी हो।
ऐसी रिपोर्ट में उन सुरक्षा उपायों के रूप में सिफारिशें जिससे अनुसूचित जातियों के संरक्षण। कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए लागू किया जा सके। तथा संभव हो तो उन सिफाऱिशोंको कानून के दायरे में लाया जाये।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for STs)
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के कार्य :
भारतीय संविधान के किसी अन्य कानून के और सरकार के किसी भी आदेश के तहत अनुसूचित जनजातियों के लिए प्रदान किए गए सुरक्षा उपायों से सम्बंधित सभी मामलों की जांच और निगरानी करना एवं ऐसे सुरक्षा उपायों के कार्य का मूल्यांकन करना।
अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों और सुरक्षा उपायों से वंचित करने के सम्बंध में विशिष्ट शिकायतों की जांच करना
अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना।
सलाह देना और संघ या किसी भी राज्य के तहत उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना
राष्ट्रपति को सुरक्षा उपायों के काम करने की सालाना या ऐसे वक्त रिपोर्ट पेश करना। जब ज़रूरी हो। ऐसी रिपोर्ट में उन सुरक्षा उपायों के रूप में सिफारिशें जिससे अनुसूचित जातियों के संरक्षण।
कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए लागू किया जा सके।
तथा संभव हो तो उन सिफाऱिशोंको कानून के दायरे में लाया जाये।
नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG):
नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) एक संवैधनिक प्राधिकरण है। जिसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 148 द्वारा स्थापित किया गया है।
यह भारत सरकार और राज्य सरकारों के सभी प्राप्तियों और व्यय का लेखा-जोखा करता है।
जिसमें सरकारी कार्यालय और प्राधिकरण को फाइनेंस किया जाता है।
नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के माध्यम से ही बहोत सारे घोटालोंका पर्दाफाश हुआ है।
उनमे से कुछ महत्त्वपूर्ण स्कैम्स है:
- 2 G स्पेक्ट्रम आबंटन
- कॉमनवेल्थ गेम्स स्कैम
- कोल माइंस आबंटन
- चारा घोटाला
- कृष्णा-गोदावरी K-G बेसिन आबंटन
नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के कार्य:
भारत के कंसोलिडेटेड कोष और राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के विधान सभा से प्राप्तियाँ और व्यय का ऑडिट।
सरकारी विभागों की-की ट्रेडिंग, मैनुफैक्चरिंग, लाभ और हानि खाते और बैलेंस शीट और किसी भी सरकारी विभाग में रखे गए अन्य सहायक खाते; सरकारी कार्यालयों या विभागों में रखे गए भंडार और स्टॉक के खाते का ऑडिट।
कंपनी अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के अनुसार सरकारी कंपनियों का ऑडिट।
संसद द्वारा बनाए गए कानूनों के तहत या उनके द्वारा स्थापित निगमों का ऑडिट।
ऐसी स्पेशल इकाइयाँ और निकाईयाँ जिन्हे केंद्रीय और राज्य सरकारों के द्वारा भरपूर निधि दिया गया है।
या ऐसी भी इकाईया जिन्हे सरकारों द्वारा बहोत काम मात्रा में निधि दिया गया हो। उनका भी ऑडिट CAG को दिया जा सकता है।
कुछ विशिष्ट प्रयोजनों के लिए निकायों को सरकार द्वारा दिया गया अनुदान और ऋण का ऑडिट।
पंचायत राज की निकाईया और शहरी स्थानीय संस्था जिन्हे सरकारी अनुदान दिया जाता है। उनका भी ऑडिट CAG कर सकती है।
अटॉर्नी जनरल:
अटॉर्नी जनरल यह एक संवैधानिक पद है जिसे भारत सरकार के मुख्य कानूनी सलाहकार माना जाता हैं। और यह भारत के सर्वोच्च न्यायालय में प्राथमिक वकील होता हैं।
इन्हे भारत के राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 76 (1) के तहत केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर नियुक्त किया जाता है।
और इनके कार्यकाल को राष्ट्रपति जब तक चाहे बढ़ा सकते है। फिलहाल के के वेणुगोपाल भारत के अटॉर्नी जनरल है।
अटॉर्नी जनरल के कार्य:
- अटॉर्नी जनरल भारत सरकार को उसके द्वारा निर्दिष्ट कानूनी मामलों में सलाह देने के लिए आवश्यक है।
- अटॉर्नी जनरल राष्ट्रपति द्वारा उन्हें सौंपे गए अन्य कानूनी कर्तव्यों का पालन भी करता है।
- अटॉर्नी जनरल भारत सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में सभी मामलों (जिसमें मुकदमे। अपील और अन्य कार्यवाही शामिल हैं) में भारत सरकार का मुख्य वकील होता है।
- अटॉर्नी जनरल संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सर्वोच्च न्यायालय में राष्ट्रपति द्वारा किए गए किसी भी आदेश के संदर्भ में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करता है।
राज्य के महाधिवक्ता (Advocate General) :
संसद के अनुच्छेद 165 राज्य के लिए एडवोकेट जनरल के पद का निर्माण किया गया है। यह पद हर राज्यों के लिए होता है। एडवोकेट जनरल राज्य का सर्वोच्च कानून अधिकारी होता है।
वह अपने सभी कानूनी मामलों में राज्य सरकार की सहायता करने के लिए जिम्मेदार है।
वह राज्य सरकार के हितों की रक्षा और रक्षा करता है। जिसप्रकार अटॉर्नी जनरल का पद केंद्र सरकार के लिए होता है।
उसी प्रकार एडवोकेट जनरल को अपने-अपने राज्यों के लिए बनाया गया है और यह राज्यपाल को रिपोर्ट करता है।
एडवोकेट जनरल के कार्य:
महाधिवक्ता, राज्य सरकार को ऐसे कानूनी मामलों के बारे में सलाह देता है। जिन्हें उन्हें राज्यपाल द्वारा सौंपा जाता है।
वह उन अन्य कर्तव्यों का भी पालन करता है जिसे राज्यपाल द्वारा उसे सौंपा जाता है।
महाधिवक्ता संविधान या किसी अन्य कानून के तहत उसके द्वारा दिए गए कार्यों का पूरी ईमानदारी से निर्वहन करता है।
महाधिवक्ता राज्य सरकार की ओर से कोर्ट में सभी मामलों (जिसमें मुकदमे। अपील और अन्य कार्यवाही शामिल हैं) में मुख्य वकील होता है।
अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय:
यह भारत सरकार का एक महत्त्वपूर्ण संवैधानिक मंत्रालय है जिसे 29 जनवरी 2006 को बनाया गया था।
यह सर्वोच्च संस्था है जिसे अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के लिए केंद्र सरकार के विनियामक और विकासात्मक कार्यक्रमों के लिए सुचारु रूप से कार्यान्वयन के लिए बनाया गया है।
भारत जिसमें मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध जोरास्ट्रियन (पारसी) और जैन शामिल हैं। जिन्हें भारत के राजपत्र में अल्पसंख्यक समुदायों के रूप में अधिसूचित किया गया है।
उपर दिये गये संवैधानिक संस्था के अलावा निम्नलिखित गैर-संवैधानिक संस्था भी है जोकी स्वतंत्र रूप से कार्य करती है।
नीती आयोग:
नीती आयोग का गठन 1 जनवरी 2015 को किया गया। इस आयोग को योजना आयोग के स्थान पर बनाया गया है।
इस आयोग के अध्यक्ष भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी है। यह आयोग सरकार के “थिंक टैंक(Think Tank)” के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान करता है।
यह आयोग सरकार को सेंट्रल एवं राज्य स्तरों पर महत्वपूर्ण परामर्श देता है।
जिसमे आर्थिक मामले में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आयात-निर्यात , देश के भीतर की परंपरागत , साथ ही अन्य देशों की बेहतरीन पद्धतियों का प्रसार, नए-नए नीतिगत विचारों (policy thinking) का समावेश और विशिष्ट विषयों पर आधारित समर्थन से संबंधित मामले शामिल होते है।
राष्ट्रीय विकास प्राधिकरण:
राष्ट्रीय विकास प्राधिकरण, जिसे राष्ट्रीय विकास परिषद् भी कहा जाता है।
यह एक सर्वोच्च संस्था है जिसे भारत में विकास के मामलों पर निर्णय लेने और विचार-विमर्श के लिए बनाया गया है। जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते है।
इस संस्था का निर्माण 6 August 1952 में प्लैंनिग कमीशन के पांच साल के प्लान पालिसी के द्वारा दिए गए निर्देशों को सही तरह से लागु करने के लिए किया गया। जिसके तहत यह संस्था राष्ट्रीय संसाधनों को जुटाना,और उन्हें मजबूती देने का काम करती है।
राज्य मानव अधिकार आयोग:
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन 12 अक्तूबर, 1993 को हुआ था।
यह आयोग संयुक्त राष्ट्र संघटन में उल्लेखित सभी मानवी अधिकार एवं मूल्यों का समर्थन एवं पालन करता है।
इन अधिकारों में निम्नलिखित चीजों को शामिल किया गया है:
- मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा
- सिविल एवं राजनैतिक अधिकार
- आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार
- बच्चों के अधिकार
- महिलाओं के विरूध्द सभी प्रकार के भेदभाव का उन्मूलन (सी ई डी ए डब्ल्यू)
केंद्रीय जांच ब्यूरो:
सीबीआई (Central Bureau of Investigation) या भारत सरकार की प्रमुख जाँच एजेन्सी है। जिसे केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो भी कहा जाता है ।
यह एजेंसी भारत में आपराधिक एवं राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े हुए भिन्न-भिन्न प्रकार के मामलों की जाँच करती है।
अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक मामलों में यह इंटरपोल की आधिकारिक इकाई के रूप में काम करती है।
यह एजेंसी पर्सनेल डिपार्टमेंट के अंतर्गत काम करती है और इसके अधिकार एवं कार्य दिल्ली विशेष पुलिस संस्थापन अधिनियम (Delhi Special Police Establishment Act), 1946 से परिभाषित हैं।
केंद्रीय सतर्कता आयोग:
केन्द्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission (CVC)) भारत सरकार के विभिन्न विभागों के अधिकारियों कर्मचारियों से सम्बन्धित भ्रष्टाचार नियंत्रण की सर्वोच्च संस्था है , जिसकी स्थापना 1964 में की गयी थी।
लोकपाल और लोकायुक्त:
इस संस्था का निर्माण 2013 मे किया गया। यह एक पूर्णतः स्वतंत्र संस्था है, जो सरकारी अधिकारीयो के विरुद्ध लगे भ्रष्टाचार के आरोपो की जाँच करती हैं।