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राष्ट्रपति शासन क्या है, ये चुनी हुई सरकारों से कैसे अलग होता है?

महाराष्ट्र राज्य में आख़िरकार सत्ता के खींचतान के चलते जब कोई भी पार्टी या उसका गठबंधन जब सरकार बनाने की स्थिति में नहीं आ सकी, तो आख़िरकार 12 नवंबर 2019 को वहाँ राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। जो 11 दिनों के लिए, 23 नवंबर 2019 तक चला। इतने बड़े और विकासशील राज्य में राष्ट्रपति शासन लगना अत्यंत आश्चर्यजनक घटना थी। जिससे लोगों में यह रूचि बढ़ी की आखिर ये राष्ट्रपति शासन क्या है, ये चुनी हुई सरकारों से कैसे अलग होता है? या उसकी अवधि कितनी होती है आदि।

इसके अलावा जम्मू और कश्मीर में धारा 370 हटने के समय राष्ट्रपति शासन ही जारी था जो 31 अक्टूबर 2019 से केंद्रशासित प्रदेश में बदल चूका है।

राष्ट्रपति शासन को केन्द्रीय शासन भी कहा जाता है। यह शासन को भारत के संविधान का अनुच्छेद-356 के तहत आधिकारिक किया गया है।

इसके अंतर्गत कोई भी राज्य में तब राष्ट्रपति शासन लगता है जब:

  1. किसी भी कारणवश किसी भी राज्य की सरकार को भंग या निलंबित कर दिया जाता है और वह राज्य प्रत्यक्ष संघीय शासन (State direct federal government) के अधीन आ जाता है।
  2.  जब चुनाव होने के बाद भी कोई भी पार्टी या उसका गठबंधन सरकार बनाने की स्थिति में नहीं होती। जैसा की महाराष्ट्र के सन्दर्भ में हुआ जो की एक संवैधानिक तंत्र की विफलता थी। उस स्थिति में राष्ट्रपति शासन लागू होता है।

आमतौर पर राष्ट्रपति शासन कोई भी परिस्थिति में last option की तरह लगाया जाता है और यह तय करता है उस राज्य के राज्यपाल का विवेक।

राष्ट्रपति शासन क्या है ?

कोई भी राज्य का नियंत्रण वहाँ की चुनी हुई सरकार के मुख्यमंत्री के बजाय सीधे भारत के राष्ट्रपति के पास आ जाता है। और administrative point of view से उस राज्य के राज्यपाल के पास कार्यकारी अधिकार केंद्रीय सरकार के द्वारा प्रदान किये जाते है उस अवस्था को राष्ट्रपति शासन कहते है

इस अवस्था में प्रशासन चलने के लिए retired सरकारी कर्मचरियों की नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा की जाती है यह शासन आम तौर पर केंद्र की ruling party की नीतियों का अनुसरण करता है क्योंकि यह शासन एक तरह से केंद्र द्वारा चलाया जाता है

प्रायः यदि सदन में किसी पार्टी या गठबंधन के पास स्पष्ट बहुमत ना हो तो राज्यपाल अपने विवेक से सदन को भंग कर सकते है। किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन की अवधि छह महीने की होती है। जिसे धीरे-धीरे 3 साल तक बढ़ा भी सकते है आमतौर पर छह महीने के बाद. पुनः परिस्थिति का आंकलन किया जाता है।

अगर उस समय तक या फिर उसके पहले अगर कोई पार्टी या गठबंधन सरकार बनाने का दावा करती है तो राज्यपाल उनके बहुमत की चिट्ठी(majority letter) को जांचकर या विधायकों की अपने सामने परेड करा कर उस दावे को सुनिश्चित करता है और राष्ट्रपति शासन उस राज्य से हटाने की राष्ट्रपति से सिफारिश करता है।

यदि छह महीने के बाद भी कोई पार्टी या गठबंधन सरकार बनाने की स्थिति में न हो तो फिर उस दशा में राज्य में चुनाव आयोजित किये जाते हैं। या राष्ट्रपति शासन की अवधी बढ़ा दी जाती है।

आमतौर पर ऐसी स्थिति में चुनाव ही होते है। लेकिन कोई राज्य सरकार किसी कारणवश बरखास्त की जाती है और उस कारण अगर राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है तो उस परिस्थिति मे राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ा दी जाती है।

वैसे देखा जाये तो राष्ट्रपति शासन यह सामान्य व्यवस्था नहीं है। इस व्यवस्था को तभी लगाना चाहिए जब अन्य कोई चारा नहीं रहा हो। जब राज्य सरकार दंगे या अशांति जैसे मामलों की निपटने में बेअसर रही हो और केंद्र महसूस करे की वह उस परिस्थितियों का निवारण करने के लिए राष्ट्रपति शासन लगाना अनिवार्य है।

पर यह देखा गया है कि इस व्यवस्था का केंद्र सरकार ने ज्यादातर दुरुपयोग ही किया है और ऐसे बहाने से उन्होंने उस राज्य सरकार को बर्खास्त किया है जो सरकार विरोधियों की है।

कुछ लोग इस व्यवस्था को भारतीय संघीय राज्य की व्यवस्था के खतरे के रूप में भी महसूस करते है।

राष्ट्रपति शासन ज्यादातर कब-कब लगाया गया ?

ऐसे कहा जाता है कि. “जो भी लंका में जाता है रावण बन जाता है”। यह कहावत भारतीय राजनीती में पूरी तरह फिट बैठती है।

इसका दुरुपयोग हर केंद्र की सरकार ने अपने फायदे के लिए किया है। चाहे वह कांग्रेस की सरकार हो जनता दल की सरकार या भारतीय जनता पार्टी की सरकार।

देश स्वतंत्र होने के बाद, 1950 में भारतीय संविधान को लागू किया गया। जिसमे राष्ट्रपति शासन का प्रविधान धारा 365 और 366 में किया गया। तब से लेकर आज 70-75 साल में राष्ट्रपति शासन का प्रयोग 100 से भी ज़्यादा बार किया गया है। इसका सबसे ज़्यादा दुरुपयोग कांग्रेस की शासनव्यवस्था में हुआ।

राष्ट्रपति शासन को सबसे पहले 31 जुलाई 1957 को लगाया गया जब केरल में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गयी कम्युनिस्ट सरकार को विमोचन समारम्भ (Redemption ceremony) के दौरान केंद्र की कांग्रेस सरकार ने बर्खास्त किया था।

1990 के बाद तो जम्मू-कश्मीर में जो अलगाववादी गतिविधियाँ तेज हुई और बाद में इसका रूपांतर आतंकवादी घटनाओं में हुआ तबसे लगातार कश्मीर वादी जलती रही है । और जब बार-बार राज्य सरकारों से स्थिति नहीं संभाली तो वहाँ राष्ट्रपति शासन बार-बार लगाया गया।

इस शासन व्यवस्था का इतना प्रभाव कश्मीर में हुआ की अभी तक ऐसे “राज्यपाल शासन” कहते है। जम्मू-कश्मीर राज्य में सबसे पहले 19 जनवरी 1990 से लेकर 9 अक्टूबर 1996 तक तक़रीबन 6 साल और 264 दिनों तक राष्ट्रपति शासन चला था।

तबसे लेकर आज तक जम्मू-कश्मीर में 8 बार यह शासन लगाया गया। खैर, अब जम्मू-कश्मीर वैसे भी केंद्रशासित प्रदेश में तब्दील हो चूका है और वहाँ से धारा 370 हटा दी गयी है।

दिलचस्प बात यह है कि सबसे ज़्यादा राष्ट्रपति शासन लगने वाला राज्य है “मणिपुर” । यहाँ पर सबसे ज़्यादा 10 बार राष्ट्रपति शासन लग चूका है।

इसके बाद नंबर आता है भारत के सबसे बड़े राज्य, उत्तर प्रदेश का। यहाँ पर 9 बार राष्ट्रपति शासन लग चूका है।

राष्ट्रपति शासन दिल्ली मे भी लगा था जब अरविन्द केजरीवाल ने जन लोकपाल के मुद्दे पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था।यह राष्ट्रपति शासन तक़रीबन 1 साल तक चला। पंजाब  में 1980 के दशक में लगभग 5 साल तक राष्ट्रपति शासन चला।

दोस्तों आज के इस पोस्ट में हमने जाना कि राष्ट्रपति शासन क्या है? what is president’s Rule in India?

उम्मीद करता हु कि आपको ये पोस्ट पसंद आया होगा।

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