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MP और MLA में क्या अंतर है?

जब भारत देश 1947 में स्वतंत्र हुआ तब देश में सरकार चलाने के लिए जो प्रणाली चुनी, उसका नाम है, लोकतान्त्रिक प्रणाली (डेमोक्रेसी) और इस प्रणाली के तहत “लोगों से, लोगों के लिए, लोगों के द्वारा” चुनी गयी सरकार शासन करती है। आइये इस पोस्ट के जरिये जानते है कि MP और MLA कौन होते है और MP और MLA में क्या अंतर है?

हमारी यह शासन पद्धति बहोत सारे देशों के स्वरुप का अध्ययन करके बनायीं गयी है।

MP कौन होता है ?

किसी संसद का सदस्य जो वोटरों द्वारा संसद का सदस्य चुना गया है उसे सांसद या MP (member of parliament) कहते हैं। MP शब्द का प्रयोग ज्यादातर निम्न सदन या लोकसभा के सदस्यों के लिए किया जाता है, लेकिन राज्यसभा के सांसदों का भी MP कहते है।

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उच्च सदन के सदस्यों को सीनेटर भी कहा जाता है और राज्यसभा को सीनेट भी कहते हैं।

देश का सर्वोच्च व्यासपीठ है, संसद (पार्लियामेंट)। भारत ने सांसदीय कार्यप्रणाली का स्वीकार किया है, जो लोकतंत्र का अभिन्न अंग है। जिसके तहत जनता अपने प्रतिनिधि का संसद में चुनकर भेजते है।

उन्हें सांसद कहा जाता है। पार्लियामेंट कुल तीन प्रकार के लोगोंके द्वारा तैयार होता है।

अब देखते है कि पार्लियामेंट के क्या-क्या अंग है?

पार्लियामेंट या संसद राष्ट्रपति, लोकसभा के सांसद और राज्यसभा के सांसदों से मिलकर बनी हुई होती है।

  • राष्ट्रपति यह एक ही पद होता है, जो सारे पार्लियामेंट का सर्वोच्च होता है।
  • लोकसभा – (लोअर हाउस या हाउस ऑफ द पीपल) : इसमें अभी कुल 545 सदस्य हैं। इन सदस्यों में से 543 सदस्य सीधे भारत के नागरिकों द्वारा वोटिंग या मतदान के आधार देश भर से चुने जाते हैं जो उनके संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

इसके आलावा बचे हुए 2 सदस्यों को एंग्लो-इंडियन कम्युनिटी के सिफारिशों के भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।

भारत का प्रत्येक नागरिक, जो 18 वर्ष से अधिक आयु का है, उसे लोकसभा के लिए मतदान करने के लिए अधिकार मिला है। संविधान में 552 सदस्यों की महत्तम सिमा तय की गयी है। एक साधारण लोकसभा का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है।

लोकसभा में सदस्यता के लिए कुछ मापदंड तैया किये गए है जैसे उस व्यक्ति को भारत का नागरिक होना चाहिए, उसकी आयु 25 वर्ष या उससे अधिक होनी चाहिए, वह व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए, दिवालिया नहीं होना चाहिए और उसे आपराधिक मामले में दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए.

  • राज्य सभा (राज्य परिषद) का उच्च सदन (उप्पर हाउस) स्थायी होता है और उसे लोकसभा की तरह विसर्जित नहीं किया जा सकता। राज्यसभा में हर तीसरे वर्ष में एक तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त होते हैं और उनकी जगह नव निर्वाचित सदस्य होते हैं। राज्यसभा के सदस्य को छह साल के लिए चुना जाता है।

इसके सदस्य प्रत्यक्ष रूप से जनता के वोटों से नहीं चुने जाते बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से राज्यों के विधायी निकायों के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं। राज्य सभा में अधिकतम 250 सदस्य हो सकते हैं।

वर्तमान में इसके पास 245 सदस्यों की स्वीकृत शक्ति है, जिनमें से 233 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से चुने जाते हैं और 12 राष्ट्रपति द्वारा नामित किए जाते हैं।

किसी राज्य के सदस्यों की संख्या उसकी जनसंख्या पर निर्भर करती है। किसी व्यक्ति के राज्यसभा का सदस्य बनने की न्यूनतम आयु 30 वर्ष है।

देश की संसद केंद्र का प्रतिनिधित्व करती है। केंद्र में जो सरकार बनती है वह चुने हुए लोकसभा सांसदों से ही बनती है। इस संसद में अलग-अलग बिल पर बहस होती है और उन बिलों को लोकसभा से पास होकर राज्यसभा में भेजा जाता है। राज्यसभा में भी अलगअलग पार्टियों में उस बिल पर बहस होती है।

अगर यह बिल वोटिंग या जनमत द्वारा राज्यसभा में भी पास होता है तो उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है और फिर राष्ट्रपति के स्वाक्षरी के बाद यह बिल कानून का रूप ले लेता है।

अगर बिल राज्यसभा में पास नहीं होता तो उसे स्टैंडिंग समिति के पास पुनर्वालोकन के लिए भेज दिया जाता है। यह समिति उस बिल पर विचार कर-उसमे संशोधन कर बाद में राज्यसभा में पेश करती है।

MLA क्या है ?

जिसप्रकार केंद्र में जो सांसद चुने जाते है उन्हें MP कहा जाता है, उसीप्रकार राज्यों के लिए जो नेता चुने जाते है उन्हें MLA (Member ऑफ़ लेजिस्लेटिव Assembly) कहा जाता है।

हमारे देश में कुल 29 राज्य है और 9 केंद्रशासित प्रदेश है जिसके कारभार के लिए विधानसभा या विधानमंडल के सदस्य जिन्हे वोटरों द्वारा चुना गया है उन्हें विधायक या MLA कहते हैं।

अब देखते है कि MP और MLA में क्या अंतर है?

MP को सांसद (खासदार) कहा जाता है और MLA को विधायक (आमदार) कहा जाता है, हालाँकि दोनों ही लोगों के निर्वाचन या चुनाव से तय किया जाता है।

सांसद लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य होता है जिससे मिलकर संसद बनती है, जो देश में सर्वोच्य है और एक ही है। जबकि विधायक विधानसभा या विधानमंडल का सदस्य होता है जो हर राज्य की सर्वोच्य संस्था है।

एक सांसद के सांसदीय क्षेत्र, 5-6 विधायकोंके क्षेत्र से मिलकर बना हुवा होता है।

उदहारण के लिए महाराष्ट्र में सांसदीय क्षेत्रों की संख्या 48 है, जबकि 288 विधायकों के क्षेत्र है।

उसी प्रकार दिल्ली, जो एक केंद्रशासित प्रदेश है, उसमे सांसदीय क्षेत्रों की संख्या 7 है, जबकि विधायकों के 70 क्षेत्र है।

हमारे देश में हर MP या सांसद को हर साल उनके सांसदीय क्षेत्र के विकास के लिए MPLAD (Member of Parliament Local Area Development) के अंतर्गत 5 करोड़ रुपये आवंटित किये जाते है।

जबकि MLA के लिए, उसके राज्यों के बजट के अनुसार अलग-अलग निधि को निर्धारित किया जाता है।

आमतौर पर बड़े राज्यों में MLA को Local Area Development Scheme के अंतरगत 2-4 करोड़ का निधि आबंटित किया जाता है, जबकि छोटी सरकार 30 लाख से लेकर 1 करोड़ तक निधि आबंटित किया जाता है।

MLA के चुनाव के बाद, जिस पार्टी या उसके गठबंधन के अधिक विधायक विधानसभा में होते हैं राज्य का मुख्यमंत्री भी उसी राजनितिक पार्टी या गठबंधन का बनता है।

उसी प्रकार संसद में जिस पार्टी या उसके गठबंधन के अधिक सांसद चुन कर आते है, वे सांसद ही अपना प्रधान मंत्री चुनते है।

सांसद के प्रश्नों के स्वरुप एक बड़े क्षेत्र के विकास के लिए होते है और वे पूरे देश के भविष्य के लिए काम करते है। जबकि MLA के पृष्ठों का स्वरुप साधारणतः उनके विधानसभा क्षेत्र से जुड़ा होता है। वे ज्यादातर राज्य से जुड़े हुए प्रश्नोंमे सम्मिलित होते है।

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