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लेबर कोर्ट क्या होता है, लेबर कोर्ट में शिकायत कैसे दर्ज करें?

दोस्तों क्या जानते है कि  लेबर कोर्ट क्या होता है, लेबर कोर्ट में शिकायत कैसे दर्ज करें? labour court kya hota hai aur  labour court me complain kaise kare?  दोस्तों अगर आप भी किसी कंपनी में एक कार्यकर्त्ता है, तो आपने लेबर कोर्ट के बारे में तो जरूर ही सुना होगा। आज के इस पोस्ट में इसी टॉपिक के ऊपर बात करने वाले है।

लेबर कोर्ट क्या होता है:

लेबर कोर्ट औद्योगिक विवादों के समाधान के लिए गठित किया गया एक न्यायालय है। सभी विवादों का समाधान, रोज़गार कानून के तहत किया जाता है। ये लेबर कोर्ट  किसी भी विवाद के निपटारे के लिए एकदम उच्च गुणवत्ता वाली निष्पक्ष व्यवस्था प्रदान करते हैं।

भारत में लेबर कोर्ट की स्थापना औद्योगिक सम्बन्ध अधिनियम, 1946 के तहत की गयी है। 1946 के बाद इस अधिनियम और न्यायालय के कार्य नियमों में काफी बदलाव किये गए हैं। इसमें कार्यस्थल सम्बन्ध अधिनियम, 2015 को भी जोड़ा गया है। इस कारण लेबर कोर्ट के दायित्व और कार्य और भी ज़्यादा बढ़ गए हैं।

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आइये जानते हैं लेबर कोर्ट द्वारा किये जाने वाले कुछ मुख्य कार्यों के बारे में:

  • औद्योगिक विवादों के बारे में निर्णय लेना
  • स्थायी आदेशों के बारे निर्णय लेना और उनकी व्याख्या करना
  • किसी अवैध तालाबंदी या हड़ताल पर उचित निर्णय लेना
  • किसी भी ग़लत तरीके से बर्खास्त किये गए कार्यकर्ता की बहाली करवाना या उसे राहत दिलवाना
  • स्वेच्छा से किसी विवाद का सन्दर्भ लेना (धारा 10A के तहत)
  • धारा 33 के तहत बर्खास्तगी की कार्यवाही का अनुमोदन करना
  • पीड़ित कर्मचारियों की शिकायत का ब्यौरा लेना
  • कर्मचारी का वेतन भुगतान ना करने पर उचित निर्णय लेना
  • मातृत्व फायदे ना देने कर कार्यवाही करना
  • यौन-शोषण के मामलों का प्रसंग लेना
  • कार्यस्थल शोषण का प्रसंग लेना

अगर आप उद्योग जगत में काम करते हैं तो औद्योगिक विवाद होना एक सामान्य बात है। इसलिए आप को ये तो पता ही होना चाहिए कि अगर कोई औद्योगिक विवाद जन्म लेता है, तो उसका लेबर कोर्ट द्वारा निपटारा किस प्रकार किया जा सकता है।

लेबर कोर्ट किसी भी औद्योगिक विवाद पर तभी निर्णय लेता है, जब आपने अपनी शिकायत दर्ज की हो। क्या आप जानना चाहते हैं कि लेबर कोर्ट में शिकायत कैसे दर्ज करें ?

लेबर कोर्ट में शिकायत कैसे दर्ज करें:

चलिए हम आपकी सहायता के लिए बताते हैं कि शिकायत दर्ज कराने की सामान्य प्रक्रिया क्या होती है। ये हम आपको केवल एक अंदाज़ा देने के लिए बता रहे हैं। आप किसी और तरीके से भी अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं।

  • सबसे पहले आप अपने मालिक या नियोक्ता को एक डिमांड नोटिस भेजें। आप ये डिमांड नोटिस या तो व्यक्तिगत रूप से दे सकते हैं, या फिर आप जिस संघ के सदस्य हैं, उस संघ के माध्यम से भी दे सकते हैं।
  • डिमांड नोटिस देने के बाद आप उन्हें उस पर कार्यवाही करने के लिए कम से कम 15 दिन दें।
  • अगर 15 दिन के भीतर मामले का सुल्टारा नहीं होता है तो आप जिस क्षेत्र में काम कर रहे हैं उस क्षेत्र के श्रम / सुलह अधिकारी के समक्ष अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं। यह अधिकारी ऐसी शिकायतों के समाधान के लिए मध्यस्थता का कार्य करता है और सौहार्दपूर्ण तरीके से मामले को निपटाने की कोशिश करता है।

परन्तु लेबर कमिशनर (श्रम  आयुक्त) के समक्ष केस दर्ज कराने की लिए आपको एक काबिल वकील की ज़रुरत पड़ेगी। अगर आप अपने नियोक्ता या मालिक के खिलाफ केस करना चाहते हैं तो आपको रोज़गार वकील से सलाह लेनी होगी। ये रोज़गार वकील आपको केस दर्ज करने से लेकर, केस के पूरे निपटारे तक आपकी मदद करते हैं।

अगर आप अपने केस के लिए एक काबिल वकील ढूँढना चाहते हैं, तो इस के लिए आपको ज़्यादा घूमने की ज़रुरत नहीं है। आजकल ऑनलाइन ही कुछ ऐसी वेबसाइट मौजूद हैं जिनमें आपको अपना केस का प्रकार और स्थान बताना होता है और आपको अपने केस के लिए उस क्षेत्र में मौजूद सबसे बेहतरीन वकीलों की सूची आसानी से मिल जाती है।

इसकी सबसे अच्छी बात ये है कि आप जब ऐसा करते हैं, तो आप को एक केस मेनेजर से जोड़ दिया जाता है जो आपको एक बेहतर वकील ढूँढने में मदद करता है। ये सब टेलीफ़ोन पर ही किया जा सकता है।

अगर आप सब कुछ करने के बाद भी संतुष्ट नहीं हो पाते हैं तो श्रम परिवीक्षा अधिकारी आपको राज्य श्रम आयुक्त के पास जाने की सलाह देते हैं। ये राज्य श्रम आयुक्त आपके केस (मामले) की गंभीरता की आधार पर आपके केस को श्रम  न्यायाधिकरण को भेज देते हैं।

उपरोक्त बताये हुए कदम शिकायत दर्ज कराने के केवल सामान्य तरीके को बताते हैं। हालांकि कभी-कभी प्रक्रिया बहुत जटिल हो जाती है। लोग रोज़गार से जुड़े विवादित मुद्दों के निपटारे के लिए विभिन्न अदालतों से संपर्क करते हैं।

उदाहरण के लिए अगर आप को आपका वेतन नहीं देने पर आप अपने नियोक्ता के खिलाफ केस करना चाहते हैं, तो आप ऐसा सिविल कोर्ट के समक्ष भी कर सकते हैं और लेबर कोर्ट के समक्ष भी। परन्तु दोनों ही परिस्थितियों में ये ज़रूरी है कि आप पहले नियोक्ता / मालिक को न्यायिक नोटिस भेजें। अगर उस पर कोई जवाब या कार्यवाही ना हो तभी केस को आगे बढ़ायें।

अब आपको ये तो स्पष्ट हो ही गया होगा की लेबर कोर्ट में केस दर्ज करने का तरीका सिविल कोर्ट जैसा ही है। हालांकि ऐसे बहुत से क़ानून हैं जिनके ज़रिये आप भारत में अपना केस दर्ज कर सकते हैं।

जैसे: कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम(Employee Indemnity Act), न्यूनतम मजदूरी अधिनियम(Minimum wages act), और कार्यस्थल यौन उत्पीडन अधिनियम(Workplace Sexual Harassment Act) आदि।

नोट: आपकी जानकारी के लिए आपको बता दें कि आपको अपने केस को विवाद होने के 1 साल के अन्दर ही लेबर कोर्ट में दर्ज करना होता है, अन्यथा कार्यवाही नहीं होती। केवल कुछ चुनिन्दा मामलों में ही कोर्ट इस समय सीमा को बढ़ाता है और वह भी तब जब वह इस बात से संतुष्ट हो की देरी के लिए दिया हुआ कारण वैध और जायज़ है।

मुझे लगता है कि अब आपको स्पष्ट हो गया होगा की लेबर कोर्ट क्या होता है, लेबर कोर्ट में शिकायत कैसे दर्ज करें? अगर आप की शिकायत गंभीर हो तो आप को केस दर्ज कराने से पहले किसी वकील की सलाह ज़रूर लेनी चाहिए। सही वकील का चुनाव आपको अपना पक्ष रखने में बहुत मदद करेगा। किसी भी औद्योगिक विवाद से सम्बंधित केस को एक साल के अंदर ही दर्ज करा दें ताकि आगे आपको किसी दिक्कत का सामना ना करना पड़े।

 

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