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गणेश चतुर्थी पर निबंध- Essay on Ganesh Chaturthi

गणेश चतुर्थी पर निबंध- Essay on Ganesh Chaturthi

गणेश चतुर्थी पर निबंध- Essay on Ganesh Chaturthi

ओम  गणेशाय नमः

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

घुमावदार सूंड वाले, विशाल शरीर काय, करोड़ों सूर्य के समान महान प्रतिभाशाली।
मेरे प्रभु, हमेशा मेरे सारे कार्य बिना विघ्न के पूरे करें।

गणेश चतुर्थी पर निबंध:

दोस्तों जैसा कि आप सब जानते हो कि अभी गणेश जी के दिन चल रहे है। और जगह जगह गणेश जी को मूर्ति के रूप में विराजमान किया गया है।

असल मे गणेश चतुर्थी है क्या? आज हम उस बारे में बात करेंगे और समझेंगे की गणेश जी कैसे प्रसन्न होते है।

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गणेश जी को शुभ कार्यो में सबसे पहले याद किया जाता है, क्योंकि इनको बाधा को दूर करने वाला एवं ऋद्धि-सिद्धि व बुद्धि का दाता भी माना जाता है।

मान्यता है कि गुरु शिष्य परंपरा के तहत इसी दिन से विद्याध्ययन का शुभारंभ होता था।

इस दिन बच्चे डण्डे बजाकर खेलते भी हैं। इसी कारण कुछ क्षेत्रों में इसे डण्डा चौथ भी कहते हैं।

गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है क्योकि गणेश जी को विनायक के नाम से भी जाना जाता है। यह हिन्दुओ द्वारा मनाया जाने वाला एक त्योहार है।

मान्‍यता है कि भादो माह की शुक्‍ल पक्ष चतु‍र्थी को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्‍य के देवता श्री गणेश जी का जन्‍म हुआ था, जो हर साल अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार अगस्त या सितंबर माह में आता है।

इसमें लोगो के घरों में, सार्वजनिक स्थानों में बड़े बड़े पंडालो को लगा कर जगह जगह हर्षोल्‍लास, उमंग और उत्‍साह के साथ गणेश चतुर्थी के दिन भक्‍त गणेश जी की मूर्ति को लाकर उनका स्वागत सत्‍कार करते हैं। गणेश जी की मूर्ति विराजित की जाती है।

इस हिन्दू त्योहार में लोग ब्रत रखते है, घरो में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है, और प्रसाद के रूप में मोदक बाटे जाते है, क्योकि गणेश जी को मोदक बहुत पसंद है।

ऐसी मान्यता है भी जो भक्त पूरी श्रद्धा, विश्वास आस्था के साथ गणेश जी की पूजा करता है उसे सुख समृद्धि और ज्ञान प्राप्त होता है।

यह त्‍त्योहार पूरे 11 दिनों तक मनाया जाता है, श्री गणेश के जन्‍म का यह उत्‍सव गणेश चतुर्थी से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी के दिन समाप्‍त होता है।

अनंत चतुर्दशी के दिन मूर्ति को एक विशाल रैली के माध्यम से, नाचते गाते, खुशी के साथ पास के नदी, तालाब, समुद्र आदि स्थानो पर विसर्जित कर दिया जाता है, विसर्जन के साथ मंगलमूर्ति भगवान गणेश को विदाई दी जाती है। साथ ही उनसे अगले बरस जल्‍दी आने का वादा भी लिया जाता है।

लोगो का विश्वास है की गणेश जी सुख समृद्धि शांति को अपने साथ लेकर आते है और बिप्पत्ति, परेशानी को अपने साथ लेकर चले जाते है।

अकेले मुम्बई में लगभग एक लाख पचास हज़ार गणेश जी की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है।

गणेश जी की मूर्ति मिट्टी की बनी होती है और यह पानी मे जाकर घुल जाती है, ऐसा विश्वास किया जाता है कि गणेश अपने माता पिता शिव जी और पार्वती के पास पहुंच गए। 

गणेश जी के जन्म को लेकर पौराणिक कथा भी है :

भगवान गणेश के जन्‍म को लेकर कथा प्रचलित है कि देवी पार्वती ने एक बार अपने शरीर के मैल और उबटन से एक बालक बनाकर उसमें प्राण डाल दिए। और उसे आदेश दिया कि, “तुम मेरे पुत्र हो तुम मेरी ही आज्ञा का पालन करना।

हे पुत्र! मैं स्नान के लिए जा रही हूं, किसी को अंदर प्रवेश नही करने देना। ऐसा कह कर पार्वती जी स्नान करने चली गयी, और बालक गणेश द्वार पर पहरी बन कर खड़े हो गए।

कुछ देर बाद वहां भगवान शंकर आए और पार्वती के भवन में जाने लगे, यह देखकर उस बालक गणेश ने उन्हें रोकना चाहा, और कहा माता स्नान कर रही है, मैं आपको अंदर प्रवेश नही करने दूंगा।

बालक हठ देख कर भगवान शंकर क्रोधित हो गए।

इसे उन्होंने अपना अपमान समझा और अपने त्रिशूल से बालक गणेश का सिर धड़ से अलग कर भीतर चले गए।

जब पार्वती को गणेश जी के सिर धड़ से अलग होने की बात पता चली तो वह विलाप करने लगीं, और शिव जी से की कहा कि मुझे बालक गणेश जीवित चाहिए यह मेरा पुत्र है।

यह देखकर वहां उपस्थित सभी देवता, देवियां, गंधर्व और शिव आश्चर्यचकित रह गए।

कहते हैं कि भगवान शंकर के कहने पर विष्णु जी एक हाथी (गज) का सिर काट कर लाए थे।

और वह सिर उन्होंने उस बालक के धड़ पर रख कर उसे जीवित किया था।

भगवान शंकर व अन्य देवताओं ने उस गजमुख बालक को अनेक आशीर्वाद दिए, देवताओं ने गणेश, गणपति, विनायक, विघ्नहरता, प्रथम पूज्य आदि कई नामों से उस बालक की स्तुति की। इस प्रकार भगवान गणेश का जन्म हुआ।

गणेश चतुर्थी का त्यौहार पूरे देश मे जोरों शोरो से मनाया जाता है। विशेषकर महाराष्ट्र, केरल, गुजरात, उड़ीसा,वेस्ट बंगाल, छत्तीसगढ़, इसके साथ साथ विदेशो में भी मनाया जाता है।

जैसे ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया, गुयाना, मॉरिशस आदि।

हिन्‍दू धर्म में गणेश जी का विशेष महत्ब है, कोई भी पूजा, हवन या मांगलिक कार्य उनकी स्‍तुति के बिना अधूरा माना जाता है।

हिन्‍दुओं में गणेश वंदना के साथ ही किसी नए काम की शुरुआत होती है।

यही वजह है कि गणेश चतुर्थी यानी कि भगवान गणेश के जन्‍मदिवस को देश भर में पूरे विधि-विधान और उत्‍साह के साथ मनाया जाता है।यह राष्‍ट्रीय एकता का भी प्रतीक है।

छत्रपति शिवाजी महाराज ने तो अपने शासन काल में राष्ट्रीय संस्कृति और एकता को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक रूप से गणेश पूजन शुरू किया था।

लोकमान्य तिलक ने 1857 की असफल क्रांति के बाद देश को एक सूत्र में बांधने के मकसद से इस पर्व को सामाजिक और राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाए जाने की परंपरा फिर से शुरू की।

मान्यता के अनुसार गणेश जी विघ्नहर्ता एवं बुध्दि प्रदायक के रूप में माने जाते है, इसलिए यह उत्सव विद्यर्थियों के लिए बहुत जरूरी है।

विद्यर्थियों को ज्ञान प्राप्ति के लिए गणेश जी की पूजा अर्चना करना चाहिये, एवं गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए मोदक के साथ साथ दुवा भी चढ़ानी चाहिए| 

गणेश जी का वाहन डिंक नामक मूषक है। गणों के स्वामी होने के कारण उनका एक नाम गणपति भी है।

ज्योतिष में इनको केतु का देवता माना जाता है और जो भी संसार के साधन हैं, उनके स्वामी श्री गणेशजी हैं।

हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें गजानन भी कहते हैं।

गणेश जी का नाम हिन्दू शास्त्रो के अनुसार किसी भी कार्य के लिये पहले पूज्य है।

इसलिए इन्हें प्रथमपूज्य भी कहते है। गणेश कि उपसना करने वाला सम्प्रदाय गाणपत्य कहलाता है।

गणेश जी से हमे काफी कुछ सीखने को मिलता है। जैसे गणेश जी की बड़ी आंखे हमे प्रेरित करती है की हमे जीवन में सूक्ष्म लेकिन तीक्ष्ण दृष्टि रखनी चाहिए|

गणेशजी के दो दांत हैं एक अखंड और दूसरा खंडित। अखंड दांत श्रद्धा का प्रतीक है यानि श्रद्धा हमेशा बनाए रखनी चाहिए।

खंडित दांत है बुद्धि का प्रतीक इसका तात्पर्य एक बार बुद्धि भ्रमित हो, लेकिन श्रद्धा नहीं  डगमगानी चाहिए | 

नाक यानी सूंड जो हर गंध को (विपदा) को दूर से ही पहचान सकें। हमारी भी परिस्थितियों को भाँपने की क्षमता ऐसी ह‍ी होनी चाहिए।

गणेश जी का बड़ा पेट उदारता को दर्शाता है। हम सभी में सभी के प्रति उदारता होनी चाहिए|  

गणेश जी का ऊपर उठा हुआ हाथ रक्षा का प्रतीक है – अर्थात, ‘घबराओ मत, “मैं तुम्हारे साथ हूँ” और उनका झुका हुआ हाथ, जिसमें हथेली बाहर की ओर है, उसका अर्थ है,”अनंत दान”।

और साथ ही आगे झुकने का निमंत्रण देना – यह प्रतीक है कि हम सब एक दिन इसी मिट्टी में मिल जायेंगे।

गणेश जी, एक विशाल शरीर वाले भगवान क्यों एक चूहे जैसे छोटे से वाहन की सवारी करते है?

इसका एक गहरा रहस्य है। एक चूहा उन रस्सियों को भी काट कर अलग कर देता है जो हमें बांधती हैं।

चूहा उस मंत्र के समान है जो अज्ञान की अन्य परतों को पूरी तरह काट सकता है, और उस परम ज्ञान को प्रत्यक्ष कर देता है जिसके भगवान गणेश प्रतीक हैं।

ज्योतिषो के अनुसार गणेश जी को केतु के देवता के रूप में जाना जाता है। केतु एक छाया ग्रह है, जो राहु नामक छाया ग्रह से हमेशा विरोध में रहता है।

बिना परेशानी के ज्ञान नहीं आता है, और बिना ज्ञान के मुक्ति नहीं मिलती।

गणेश जी को मानने वालों का मुख्य प्रयोजन उनको सभी जगह देखना है।

क्योकि गणेश जी अकेले शंकर पार्वते के पुत्र और देवता ही नही ही नहीं बल्कि साधन भी है जो संसार के प्रत्येक कण में विद्यमान है।

उदाहरण के लिये जो साधन है वही गणेश है, जीवन को चलाने के लिये गेहू की आवश्यकता होती है, जीवन को चलाने का साधन गेहू है, तो गेहू गणेश है।

गेहू को पैदा करने के लिये व्यक्ति की आवश्यकता होती है, तो व्यक्ति गणेश है।

व्यक्ति को गेहू बोने और निकालने के लिये बैलों की, ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है तो बैल, ट्रेक्टर भी गणेश है।

गेहू बोने के लिये खेत की आवश्यकता होती है, तो खेत गणेश है।

अनाज को रखने के लिये स्टोरेज की आवश्यकता होती है तो स्टोरेज का स्थान भी गणेश है।

गेहू के घर में आने के बाद उसे पीसने के लिए चक्की की आवश्यकता होती है तो चक्की भी गणेश है।

चक्की से निकालकर रोटी बनाने के लिये तवे, चिमटे और रोटी बनाने वाले की आवश्यकता होती है। तो यह सभी गणेश है।

खाने के लिये हाथों की आवश्यकता होती है, तो हाथ भी गणेश है।

मुँह में खाने के लिये दाँतों की आवश्यकता होती है, तो दाँत भी गणेश है।

कहने के लिये जो भी साधन जीवन में प्रयोग किये जाते वे सभी गणेश है।

ज्योतिषो के अनुसार गणेश जी को अपने जीवन के सभी आयामों में देखना ही उद्देश्य है।

हमारे प्राचीन ऋषि मुनि इतने गहन बुद्धिमान थे, कि उन्होंने ज्ञान को शब्दों के बजाय इन प्रतीकों के रूप में दर्शाया।

क्योंकि शब्द तो समय के साथ बदल जाते हैं। लेकिन प्रतीक कभी नहीं बदलते।

तो जब भी हम उस परमात्मा का ध्यान करें, हमें इन गहरे प्रतीकों को अपने मन में रखना चाहिये।

और उसी समय यह भी याद रखें, कि गणेश जी हमारे भीतर ही हैं । इसी विश्वास के साथ हमें गणेश चतुर्थी मनानी चाहिये।

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